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Saturday, May 3, 2025
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डॉ. मनमोहन सिंह: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री का निधन, एक युग का अंत

डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और आर्थिक सुधारों के सूत्रधार, का 26 दिसंबर 2024 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी सादगी, विद्वत्ता, और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अमिट छाप छोड़ी। प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने भारत को आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दिलाई। उनके निधन से देश ने एक महान नेता और प्रेरणा स्रोत खो दिया है।

डॉ. मनमोहन सिंह का निधन: भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपूरणीय क्षति

26 दिसंबर 2024 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का नई दिल्ली में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से देश और दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। उन्हें एक विद्वान, दूरदर्शी नेता और विनम्र व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता था। डॉ. सिंह का जीवन भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज में उनके अतुलनीय योगदान के लिए सदैव याद किया जाएगा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में स्थित) के गाह गांव में हुआ। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक उत्कृष्ट अर्थशास्त्री और नीति निर्माता बनने के लिए प्रेरित किया।

प्रारंभिक करियर और भारतीय रिजर्व बैंक में भूमिका

डॉ. सिंह ने अपने करियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अध्यापन से की। उन्होंने 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय बैंकिंग और मौद्रिक नीति को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने और देश के विकास में योगदान दिया।

1991 का आर्थिक सुधार और वित्त मंत्री का कार्यकाल

1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था, डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में आगे बढ़ाया।

  • विदेशी निवेश को प्रोत्साहन दिया गया।
  • व्यापार पर लगी पाबंदियों को हटाया गया।
  • रुपये का अवमूल्यन कर इसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया गया।

इन कदमों ने भारत को आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाया और वैश्विक मंच पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया।

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (2004-2014)

डॉ. मनमोहन सिंह 2004 में भारत के 13वें प्रधानमंत्री बने और इस पद पर 10 वर्षों तक रहे। वे इस पद पर आसीन होने वाले पहले सिख प्रधानमंत्री थे। उनके कार्यकाल में भारत ने कई प्रमुख क्षेत्रों में प्रगति की।

प्रमुख उपलब्धियां:

  1. आर्थिक विकास: भारत ने तेज आर्थिक वृद्धि दर दर्ज की।
  2. मनरेगा: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसी योजनाओं को लागू किया गया।
  3. परमाणु समझौता: अमेरिका के साथ ऐतिहासिक नागरिक परमाणु समझौता हुआ।
  4. शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा के अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए।

डॉ. सिंह का नेतृत्व विवादों से परे उनकी सादगी और कार्यकुशलता के लिए सराहा गया।

सम्मान और पुरस्कार

डॉ. मनमोहन सिंह को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

  • पद्म विभूषण (1987): देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित।
  • एशिया मनी पुरस्कार: उन्हें एशिया का सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री घोषित किया गया।
  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार: उनकी आर्थिक विशेषज्ञता के लिए।

निधन और शोक संदेश

26 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में डॉ. मनमोहन सिंह ने अंतिम सांस ली। उनके निधन पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया। दुनिया भर के नेताओं ने उन्हें एक विद्वान और कुशल प्रशासक के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित की।

उनकी पत्नी, श्रीमती गुरशरण कौर, और तीन बेटियां—उपिंदर, दमन, और अमृत—उनके परिवार में हैं। उनकी सादगी, ईमानदारी, और सेवा भावना के कारण वे भारतीय राजनीति के आदर्श बने रहेंगे।

डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान: आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

डॉ. सिंह का जीवन भारतीय राजनीति, अर्थशास्त्र, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनकी नीतियों ने भारत को न केवल आर्थिक संकट से बाहर निकाला बल्कि इसे एक वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने की नींव भी रखी। उनका निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

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