पद्म विभूषण सम्मानित तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया है। 73 साल की उम्र में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। संगीत जगत के लिए यह एक बेहद दुखद और चौंकाने वाली खबर है। ज़ाकिर हुसैन ने मात्र 12 साल की उम्र में संगीत की दुनिया में कदम रखा था और दशकों तक अपने संगीत के जरिए दुनिया भर के लोगों के दिलों पर राज किया।
लंबे समय से चल रहे थे बीमार
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज़ाकिर हुसैन लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। रविवार, 15 दिसंबर को उनकी तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। आईसीयू में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
ज़ाकिर हुसैन के निधन की खबर उनके करीबी दोस्त राकेश चौरसिया ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दी। उन्होंने बताया कि ज़ाकिर हुसैन को ब्लड प्रेशर और दिल की समस्याएं थीं, जिसके कारण उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। जैसे ही उनके निधन की खबर सामने आई, पूरे मनोरंजन और संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
संगीत की दुनिया को दिया अमूल्य योगदान
ज़ाकिर हुसैन का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने तबले को एक नई पहचान दी और शास्त्रीय संगीत को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया। उनके निधन से उनके परिवार, दोस्तों और फैंस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। हर कोई उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहा है। सोशल मीडिया पर उनके लाखों प्रशंसक उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
ज़ाकिर हुसैन का करियर और उपलब्धियां
ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ था। वह मशहूर संगीतकार उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे थे। संगीत की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मात्र 12 साल की उम्र में अपना करियर शुरू किया।
साल 1973 में उनका पहला म्यूजिक एल्बम “लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड” रिलीज़ हुआ, जिसने उन्हें अपार सफलता दिलाई। इसके बाद उन्होंने तबला वादन के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किए। साल 1988 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया और 2002 में पद्म भूषण से नवाजा गया।
पिछले साल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। 1973 से 2007 के बीच अपने सक्रिय करियर के दौरान ज़ाकिर हुसैन ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते और भारतीय संगीत को विश्व मंच पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
उनके निधन से भारतीय संगीत की दुनिया में एक युग का अंत हो गया है। उनकी कला और योगदान को सदियों तक याद किया जाएगा।